contact@sanatanveda.com

Vedic And Spiritual Site


Mahishasura Mardini Stotram in Hindi

Mahishasura Mardini Stotram in Hindi

 

॥ महिषासुर मर्दिनि स्तॊत्रम् ॥

 

******

 

अयिगिरि नंदिनि नंदित मॆदिनि विश्व विनॊदिनि नंदनुतॆ ।

गिरिवर विंध्य शिरॊऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुतॆ ।

भगवति हॆ शितिकंठ कुटुंबिनि भूरिकुटुंबिनि भूरिकृतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १ ॥

 

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरशॆ ।

त्रिभुवनपॊषिणि शंकरतॊषिणि किल्बिषमॊषिणि घॊषरतॆ ।

दनुजनिरॊषिणि दितिसुतरॊषिणि दुर्मदशॊषिणि सिंधुसुतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ २ ॥

 

अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रियवासिनि हासरतॆ ।

शिखरिशिरॊमणि तुंगहिमालय शृंगनिजालय मध्यगतॆ ।

मधुमधुरॆ मधुकैटभगंजिनि कैटभभंजिनि रासरतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ ३ ॥

 

अयि शतखंड विखंडितरुंड वितुंडितशुंड गजाधिपतॆ ।

रिपुगजगंड विदारणचंड पराक्रमशुंड मृगाधिपतॆ ।

निजभुजदंड निपातितखंड विपातितमुंड भटाधिपतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ ४ ॥

 

अयिरणदुर्मद शत्रुवधॊदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृतॆ ।

चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपतॆ ।

दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतांतमतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ ५ ॥

 

अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभय दायकरॆ ।

त्रिभुवनमस्तक शूलविरॊधि शिरॊऽधिकृतामल शूलकरॆ ।

दुमिदुमितामर दुंदुभिनाद महॊमुखरीकृत तिग्मकरॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ ६ ॥

 

अयिनिजहुंकृति मात्रनिराकृत धूम्रविलॊचन धूम्रशतॆ ।

समरविशॊषित शॊणितबीज समुद्भवशॊणित बीजलतॆ ।

शिवशिवशिव शुंभनिशुंभ महाहवतर्पित भूतपिशाचरतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ ७ ॥

 

धनुरनुसंग रणक्षणसंग परिस्फुरदंग नटत्कटकॆ ।

कनकपिशंग पृषत्कनिषंग रसद्भटशृंग हताबटुकॆ ।

कृतचतुरंग बलक्षितिरंग घटद्भहुरंग रटद्बटुकॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ ८ ॥

 

जयजय जप्य जयॆजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुतॆ ।

झणझण झिंझिमि झिंकृतनूपुर शिंजितमॊहित भूतपतॆ ।

नटित नटार्थ नटीनटनायक नाटितनाट्य सुगानरतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ ९ ॥

 

अयि सुमन: सुमन: सुमन: सुमन: सुमनॊहर कांतियुतॆ ।

श्रितरजनी रजनीरजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृतॆ ।

सुनयनविभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १० ॥

 

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरतॆ ।

विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृतॆ ।

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललितॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ ११ ॥

 

अविरलगंड गलन्मदमॆदुर मत्तमतंगज राजपतॆ ।

त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयॊनिधि राजसुतॆ ।

अयि सुदतीजन लालसमानस मॊहनमन्मथ राजसुतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १२ ॥

 

कमलदलामल कॊमलकांतिल कलाकलितामल भाललतॆ ।

सकलविलास कलानिलयक्रम कॆलिचलत्कल हंसकुलॆ ।

अलिकुलसंकुल कुवलयमंडल मौलिमिलद्भकुलालिकुलॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १३ ॥

 

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकॊकिल मंजुमतॆ ।

मिलितपुलिंद मनॊहरगुंजित रंजितशैल निकुंजगतॆ ।

निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसंभृत कॆलितलॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १४ ॥

 

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चंद्ररुचॆ ।

प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चंद्ररुचॆ ।

जितकनकाचल मौलिमदॊर्जित निर्भरकुंजर कुंभकुचॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १५ ॥

 

विजितसहस्र करैकसहस्र करैकसहस्र करैकनुतॆ ।

कृतसुरतारक संगरतारक संगरतारक सूनुसुतॆ ।

सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १६ ॥

 

पदकमलं करुणानिलयॆ वरिवस्यति यॊऽनुदिनं सशिवॆ ।

अयिकमलॆ कमलानिलयॆ कमलानिलय: सकथं न भवॆत् ।

तवपदमॆव परंपदमित्यनु शीलयतॊ मम किं न शिवॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १७ ॥

 

कनकलसत्कल सिंधुजलैरनु सिंजिनुतॆगुण रंगभुवम् ।

भजति सकिं न शचीकुचकुंभ तटीपरिरंभ सुखानुभवम् ।

तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम् ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १८ ॥

 

तवविमलॆंदु कुलंवदनॆंदु मलंसकलं अनुकूलयतॆ ।

किमु पुरुहूतपुरिंदु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियतॆ ।

मम तु मतं शिवनामधनॆ भवतिकृपया किमुतक्रियतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ १९ ॥

 

अयिमयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमॆ ।

अयि जगतॊजननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरतॆ ।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरु तादुरुताप मपाकुरुतॆ ।

जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥ २० ॥

 

***

 

स्तुतिमितिस्तिमितस्तु समाधिना नियमतॊऽ नियमतॊनुदिनं पठॆत् ।

सरमया रमया सहसॆव्यशॆ परिजनॊहि जनॊऽपि च सुखी भवॆत् ॥ २१ ॥

 

|| इति श्री महिषासुर मर्दिनि स्तॊत्रं संपूर्णम् ॥

 
Also View this in: Kannada | Hindi | Telugu | Tamil | Gujarati | Oriya | Malayalam | Bengali |